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भारतवर्ष की खोज- सनातन खोज

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  हमारा प्राचीन "भारतवर्ष" ★★★ कौन कहता है कि भारत की खोज वास्को डी गामा ने की, क्यों पढ़ाया जाता है फर्जी इतिहास। ★★★ √●भारतवर्ष को अंग्रेजों ने नहीं खोजा था, यह सनातन है और इसके साक्ष्य भी हैं √●इतिहास हमेशा विजित द्वारा लिखा जाता है और वह इतिहास नहीं विजित की गाथा होती है। भारत के साथ भी यही हुआ है पहले इस्लामिक आक्रमण और 800 वर्षों शासन और फिर अंग्रेज़ो के 200 वर्ष तक के शासन ने इस देश के इतिहास लेखन को इस तरह से प्रभावित किया कि आज भी लोगों को यही लगता है कि India को ब्रिटिश ने बनाया। लोगों के मन में यह हिन भावना बैठी हुई है कि ब्रिटिश के आने से पहले भारत या India था ही नहीं। हाल ही में एक इंटरव्यू के दौरान अभिनेता और अपने आप को ‘History_Buff’ कहने वाले सैफ अली खान ने ये कह दिया कि मुझे नहीं लगता है India जैसा कोई कान्सैप्ट ब्रिटिश के आने से पहले था के नहीं। यह कोई हैरानी की बात नहीं है। पिछले 70 वर्षों में जिस तरह से इतिहास को उसी इस्लामिक और ब्रिटिश को केंद्र में रख कर पढ़ाया गया है ये उसी का परिणाम है। ब्रिटिश काल के इतिहासकारों ने अपने हिसाब से ही इतिहास लिखा जैसा एक व

-: मत चूको चौहान :-

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 !!!---: मत चूको चौहान :---!!! ==================== भारत महान्  चार बांस, चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण! ता उपर सुल्तान है, चूको मत चौहान!! वीरभोग्या वसुन्धरा  प्राचीन भारत के स्वर्णिम इतिहास की बात हो तो "हिन्दशिरोमणि पृथ्वीराज चौहान" की भी याद दिलाता है। उन्होंने विदेशी इस्लामिक आक्रमणकारी मोहम्मद गौरी को 16 बार पराजित किया और उदारता दिखाते हुए हर बार जीवित छोड़ दिया, पर जब सत्रहवीं बार वे पराजित हुए, तो मोहम्मद गौरी ने उन्हें नहीं छोड़ा। वह उन्हें अपने साथ बंदी बनाकर काबुल  अफगानिस्तान ले गया और वहाँ उनकी आंखें फोड़ दीं। वीरभोग्या वसुन्धरा  पृथ्वीराज का राजकवि चन्द बरदाई पृथ्वीराज से मिलने के लिए काबुल पहुंचा। वहां पर कैद खाने में पृथ्वीराज की दयनीय हालत देखकर चंद्रवरदाई के हृदय को गहरा आघात लगा और उसने गौरी से बदला लेने की योजना बनाई।  चंद्रवरदाई ने गौरी को बताया कि हमारे राजा एक प्रतापी सम्राट हैं और इन्हें शब्दभेदी बाण (आवाज की दिशा में लक्ष्य को भेदना) चलाना आता है, यदि आप चाहें तो इनके शब्दभेदी बाण से लोहे के सात तवे बेधने का प्रदर्शन आप स्वयं भी देख सकते हैं।  इस पर गौ

यह नववर्ष हमें स्वीकार नहीं

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  यह नववर्ष (अंग्रेजी ईसवी) हमें स्वीकार नहीं.... ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं है अपना ये त्योहार नहीं है अपनी ये तो रीत नहीं है अपना ये व्यवहार नहीं। धरा ठिठुरती है सर्दी से आकाश में कोहरा गहरा है बाग़ बाज़ारों की सरहद पर सर्द हवा का पहरा है सूना है प्रकृति का आँगन कुछ रंग नहीं  ,  उमंग नहीं। हर कोई है घर में दुबका हुआ नव वर्ष का ये कोई ढंग नहीं चंद मास अभी इंतज़ार करो निज मन में तनिक विचार करो नये साल नया कुछ हो तो सही क्यों नक़ल में सारी अक्ल बही उल्लास मंद है जन -मन का आयी है अभी बहार नहीं ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं। है अपना ये त्यौहार नहीं ये धुंध कुहासा छंटने दो रातों का राज्य सिमटने दो प्रकृति का रूप निखरने दो फागुन का रंग बिखरने दो प्रकृति दुल्हन का रूप धार जब स्नेह  –  सुधा बरसायेगी शस्य  –  श्यामला धरती माता घर -घर खुशहाली लायेगी तब चैत्र शुक्ल की प्रथम तिथि नव वर्ष मनाया जायेगा आर्यावर्त की पुण्य भूमि पर जय गान सुनाया जायेगा युक्ति  –  प्रमाण से स्वयंसिद्ध नव वर्ष हमारा हो प्रसिद्ध आर्यों की कीर्ति सदा -सदा नव वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा अनमोल विरासत के धनिकों को चाहिये कोई उ

खुदीराम बोस : सबसे कम उम्र के शहीद क्रांतिकारी

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आज खुदीराम बोस की 129वीं जयंती है. खुदीराम का जन्म 3 दिसंबर, 1889 को मिदनापुर जिले के हबीबपुर गांव में हुआ था. उनके पिता त्रैलोक्यनाथ बसु नराजोल इस्टेट के तहसीलदार थे और उनकी माता का नाम लक्ष्मीप्रिया देवी था.  ऐसे पड़ा उनका नाम खुदीराम उस दौर में देश में नवजात शिशु मृत्युदर काफी अधिक थी. यही वजह थी कि उस समय लोग बच्चे के जीवन की कामना में कई तरह के टोटके अपनाया करते थे. उन दिनों के रिवाज के हिसाब से नवजात शिशु का जन्म होने के बाद उसकी सलामती के लिए कोई उसे खरीद लेता था. कहा जाता है कि लक्ष्मीप्रिया देवी और त्रैल्योकनाथ बसु के घर जब पुत्र का जन्म हुआ तो उनकी बड़ी बेटी ने तीन मुट्ठी खुदी (चावल) देकर उसे खरीद लिया, जिसके कारण उस बालक का नाम पड़ा - खुदीराम. फांसी पर चढ़नेवाले पहले सेनानी माना जाता है खुदीराम भारतीय स्वाधीनता संग्राम में फांसी पर चढ़नेवाले सबसे कम उम्र के स्वतंत्रता सेनानी हैं. वे हंसते-हंसते मात्र 18 साल की उम्र में देश के लिए फांसी के फंदे पर झूल गये थे. उनकी शहादत ने देश के लोगों में आजादी की जो ललक पैदा की, उससे स्वाधीनता आंदोलन को नया बल मिला. बोस जब बहुत छोटे थे, तभी

परम श्रद्धेय अटल बिहारी बाजपेई जी : एक युगद्रष्टा

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अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय राजीनीति के बहुत ही प्रतिभावान व्यक्ति है एक राजनितिक होने के साथ साथ अटल बिहारी वाजपेयी एक कवि, संघ प्रचारक (आरएसएस) एंव आदर्शवादी व्यक्ति भी है साथ ही पिछले पांच दशको से सक्रीय राजनीती में प्रमुख भूमिका निभाई है और 10 बार विभिन्न राज्यों के लोकसभा से चुनाव जीतते हुए सांसद बने थे जो की अपने आप में एक रिकॉर्ड है! इसी प्रसिद्धि के चलते उनके प्रतिद्वंदी भी उनके इस प्रतिभा के कायल है अटल बिहारी वाजपेयी  निर्णय लेने में तनिक हिचकते नही है वे निर्णय लेने में जितने कठोर दिल से उतने ही नरमदिल स्वाभाव के व्यक्ति है जिसके कारण उन्हें भारतीय राजनीती का  “अजातशत्रु”  भी कहा जाता है और यही नही राजनीती के सत्ता के सर्वोच्च शिखर प्रधानमन्त्री पद को भी इन्होने पहली बार 1996 में मात्र 13 दिन के लिए प्रधानमन्त्री बने फिर दूसरी बार मात्र 1 साल के लिए कार्यकाल संभाला और इसके पश्चात तीसरी बार पूर्ण बहुमत के साथ 1998 से 2004 तक प्रधानमन्त्री पद को सुशोभित किया, जो की यह कार्यकाल काफी सफल रहा. भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी : एक जीवन परिचय नाम : अटल बिहार