-: मत चूको चौहान :-

 !!!---: मत चूको चौहान :---!!!

====================

भारत महान् 

चार बांस, चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण!

ता उपर सुल्तान है, चूको मत चौहान!!

वीरभोग्या वसुन्धरा 

प्राचीन भारत के स्वर्णिम इतिहास की बात हो तो "हिन्दशिरोमणि पृथ्वीराज चौहान" की भी याद दिलाता है। उन्होंने विदेशी इस्लामिक आक्रमणकारी मोहम्मद गौरी को 16 बार पराजित किया और उदारता दिखाते हुए हर बार जीवित छोड़ दिया, पर जब सत्रहवीं बार वे पराजित हुए, तो मोहम्मद गौरी ने उन्हें नहीं छोड़ा। वह उन्हें अपने साथ बंदी बनाकर काबुल  अफगानिस्तान ले गया और वहाँ उनकी आंखें फोड़ दीं।

वीरभोग्या वसुन्धरा 

पृथ्वीराज का राजकवि चन्द बरदाई पृथ्वीराज से मिलने के लिए काबुल पहुंचा। वहां पर कैद खाने में पृथ्वीराज की दयनीय हालत देखकर चंद्रवरदाई के हृदय को गहरा आघात लगा और उसने गौरी से बदला लेने की योजना बनाई। 

चंद्रवरदाई ने गौरी को बताया कि हमारे राजा एक प्रतापी सम्राट हैं और इन्हें शब्दभेदी बाण (आवाज की दिशा में लक्ष्य को भेदना) चलाना आता है, यदि आप चाहें तो इनके शब्दभेदी बाण से लोहे के सात तवे बेधने का प्रदर्शन आप स्वयं भी देख सकते हैं। 


इस पर गौरी तैयार हो गया और उसके राज्य में सभी प्रमुख ओहदेदारों को इस कार्यक्रम को देखने हेतु आमंत्रित किया।


पृथ्वीराज और चंद्रबरदाई ने पहले ही इस पूरे कार्यक्रम की गुप्त मंत्रणा कर ली थी कि उन्हें क्या करना है। निश्चित तिथि को दरबार लगा और गौरी एक ऊंचे स्थान पर अपने मंत्रियों के साथ बैठ गया। भाषाणां जननी संस्कृत भाषा 


चंद्रवरदाई के निर्देशानुसार लोहे के सात बड़े-बड़े तवे निश्चित दिशा और दूरी पर लगवाए गए। चूँकि पृथ्वीराज की आँखे निकाल दी गई थी और वे अंधे थे, अतः उनको कैद एवं बेड़ियों से आजाद कर बैठने के निश्चित स्थान पर लाया गया और उनके हाथों में धनुष बाण थमाया गया। चाणक्य नीति 


इसके बाद चंद्रवरदाई ने पृथ्वीराज के वीर गाथाओं का गुणगान करते हुए बिरूदावली गाई तथा गौरी के बैठने के स्थान को इस प्रकार चिन्हित कर पृथ्वीराज को अवगत करवाया । आर्ष दृष्टि 


‘‘चार बांस, चैबीस गज, अंगुल अष्ठ प्रमाण।

ता ऊपर सुल्तान है, चूको मत चौहान।।’’


अर्थात् चार बांस, चैबीस गज और आठ अंगुल जितनी दूरी के ऊपर सुल्तान बैठा है, इसलिए चौहान चूकना नहीं, अपने लक्ष्य को हासिल करो। ज्ञान की बातें - आयुर्वेद के स्वास्थ्य सूत्र 


इस संदेश से पृथ्वीराज को गौरी की वास्तविक स्थिति का

आंकलन हो गया। तब चंद्रवरदाई ने गौरी से कहा कि पृथ्वीराज आपके बंदी हैं, इसलिए आप इन्हें आदेश दें, तब ही यह आपकी आज्ञा प्राप्त कर अपने शब्द भेदी बाण का प्रदर्शन करेंगे।

इस पर ज्यों ही गौरी ने पृथ्वीराज को प्रदर्शन की आज्ञा का आदेश दिया, पृथ्वीराज को गौरी की दिशा मालूम हो गई और उन्होंने तुरन्त बिना एक पल की भी देरी किये अपने एक ही बाण से गौरी को मार गिराया। उपनिषद् प्रकाश 


गौरी उपर्युक्त कथित ऊंचाई से नीचे गिरा और उसके प्राण पंखेरू उड़ गए। चारों ओर भगदड़ और हा-हाकार मच गया, इस बीच पृथ्वीराज और चंद्रवरदाई ने पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार एक-दूसरे को कटार मार कर अपने प्राण त्याग दिये।


"आत्मबलिदान की यह घटना भी 1192 ई. वसंत पंचमी वाले दिन ही हुई थी।" अनमोल सुविचार 


ये गौरवगाथा अपनो को अवश्य सुनाए ।


आपका अनुज - कृष्णकान्त रामराज सविता


Comments

Popular posts from this blog

संघ गणगीत - कोटि-कोटि कण्ठों ने गाया माँ का गौरव गान है

संस्कृत गीत - मनसा सततं स्मरणीयम्

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ संघ गीत एक प्रेरणा - संघ एकल गीत - नमन करें इस मातृभूमि को