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Showing posts from June, 2017

EKAL GEET - भारत माँ के चरण कमल पर तन मन धन कर दे नौछावर

भारत माँ के चरण कमल पर तन मन धन कर दे नौछावर साधक आज प्रतिज्ञा कर ले जननी के इस संकट क्षण पर ॥धृ॥ रुदन कर रहा आज हिमालय सिसक रही गंगा की धारा दग मग है कैलास शंभु का व्यथित आज बद्रिश्वर प्यारा उधर सुलगती वन्हि शिखा लख भयकम्पित निज नन्दनवन है अमरनाथ के पावन मंदिर पर अरियोंका कृद्ध नयन है निज माता की लाज बचाने हम सब आज बने प्रलयंकर ॥१॥ मातृभूमी का कंकर कंकर आज महा शंकर बन जाये थिरक उठे ताण्डव की गती फिर विश्व पुनः कम्पित हो जाये खुले तीसरा नेत्र तेज से अरी दल सारा भस्मसात हो चमके त्रिशूल पुनः करों में अरी षोणित से तप्तपात हो जय के नारे गून्जे नभ में जले विजय का दीप घर घर ॥२॥ राणा के उस भीषण प्रण को आज पुनः हम सब दोहराए त्यज देंगे सारा सुख वैभव जब तक माँ का कष्ट न जाए क्या होगा माता के कारण अगर राष्ट्र के लिये मरेंगे भूमी शयन घांसों की रोटी खाकर भी सब व्यथा हरेंगे निश्चित होगी विजय सत्य की दुष्मन काँपेंगे थर थर थर ॥३॥

देशभक्ति - 1, यह देख दशा तुम भारत की

यह देख दशा तुम भारत की, जो मानवता का मुकुट रहा जिसमें अशांति का नाम न था, यह देखो गर्त में गिरने चला फिर भी अगर तुम अचेत रहो, फिर इससे ग्लानि और क्या हो…………. तुम फिर भी यों हीं बैठे रहो, और माता की दुर्दशा हो ?…………………………. यह तुम सोचो क्या यह ग्लानि नहीं, मानवता की यह हानि नहीं मानव तुम पर थूकेंगे हीं, तुमको उलाहना देंगे हीं मानव तुम भी सचेष्ट रहो, ताकि मर्यादा धूल न हो………………….. पहले बुराइयाँ दूर करो, फिर नव समाज निर्माण करो…………………………. भारत में अनेक बुराई है, अच्छे लोगों ने राजनीति से दूरी बनाई है सत्ता स्वार्थियों के पास है गिरवी पड़ी, इसलिए गरीबों पर आफत बड़ी अच्छे आदर्शों को हमने भुला दिया, इसलिए अपना सबकुछ गंवा दिया…………. कन्या अब भी अबला है, न जाने नारी को क्यों मिली यह सजा है…………………………. पहले तुम कुप्रथाओं का नाश करो, ताकि दुखियन का भी उद्धार तो हो तुम सदा-सदा सचेष्ट रहो, ताकि भारत में कोई दुखी न हो इस पर न तुम्हारा ध्यान गया, भारत का गौरव मिट हीं गया मैं फिर कहता हूँ मनन करो, भारत का गौरव प्राप्त करो……. तुम मनन करो…….. तुम मनन करो…………………………. – डॉ न

वीर रस -1 , हाँ इस देश का वासी हूँ।

हाँ इस देश का वासी हूँ, इस माटी का क़र्ज़ चुकाऊंगा जीने का दम रखता हूँ, तो मरकर भी दिखलाऊंगा ।। नज़र उठा कर न देखना, ऐ दुश्मन मेरे देश को मरूँगा मैं जरूर पर… तुझे मार कर हीं जाऊंगा ।। कसम मुझे इस माटी की, कुछ ऐसा मैं कर जाऊंगा हाँ इस देश का वासी हूँ, इस माटी का क़र्ज़ चुकाऊंगा ।। आशिक़ तुझे मिले होंगे बहुत, पर मैं ऐसा कहलाऊंगा सनम होगा मेरा वतन और मैं दीवाना कहलाऊंगा ।। माया में फंसकर तो मरता हीं है हर कोई पर तिरंगे को कफ़न बना कर मैं शहीद कहलाऊंगा ।। हाँ इस देश का वासी हूँ, इस माटी का क़र्ज़ चुकाऊंगा । मेरे हौसले न तोड़ पाओगे तुम, क्योंकि मेरी शहादत हीं अब मेरा धर्म है ।। सीमा पर डटकर खड़ा हूँ, क्योंकि ये मेरा वतन है ऐ मेरे देश के नौजवानों अब आंसू न बहाओ तुम ।। सेनानियों की शाहदत का अब कर्ज चुकाओ तुम हासिल करो विश्वास तुम, करो देश के दर्द का एहसास तुम ।। सपना हो हिन्द का सच, दुश्मनों का करो विनाश तुम उठो तुम भी और मेरे साथ कहो, कुछ ऐसा मैं भी कर जाऊंगा ।। हाँ इस देश का वासी हूँ, इस माटी का क़र्ज़ चुकाऊंगा ऐ देश के दुश्मनों ठहर जाओ…. संभल जाओ ।। मैं इस देश

देशभक्तों की निंद्रा - कविता

जब-जब लोकतंत्र से जयचन्दों को अभयदान मिलेगा तब-तब भारत माता असहनीय दुःख पायेगी…………. जब-जब न्याय अमीरों की जागीर बनेगा तब-तब गरीब मुजरिम ठहराया जायेगा…………. जब-जब मिडिया टीआरपी की भूखी होगी तब-तब अर्धसत्य दिखाया जाएगा…………. जब-जब फिल्में अश्लीलता परोसेंगी तब-तब कई ज़िंदगियाँ तबाह होंगी…………. जब-जब इतिहासकार मुगलों की जयकार करेंगे तब-तब युवा दिग्भ्रमित होगा…………. जब-जब साहित्य समाज में विष घोलेगा तब-तब भारत का पतन होगा…………. जब-जब शिक्षा से नैतिकता गायब होगी तब-तब अगली पीढ़ी नालायक होगी…………. जब-जब किसान खून की आँसू रोयेंगे तब-तब महंगाई सबको रुलाएगी…………. जब-जब तथाकथित बुद्धिजीवी समाज को भटकाना चाहेंगे तब-तब राष्ट्रभक्त उन्हें धूल चटाएंगे…………. जब-जब लोग अपने कर्तव्यों को भूलेंगे तब-तब अधिकार राष्ट्र के लिए घातक होगा…………. जब-जब योग्य, लेकिन चरित्रहीन लोग, युवाओं के आदर्श बनेंगे तब-तब नई पीढ़ी के चरित्र का भी घोर पतन होगा…………. देशभक्तों, घोर निंद्रा अब तो त्यागो इससे पहले की राष्ट्र खंडित-खंडित हो जाए…………. खड़े सैनिक सीमा पर, देश के लिए मरने को जरा

देशभक्ति -2, हाँ मैं आज़ाद हिंदुस्तान लिखने आया हूँ।

भूखे, गरीब, बेरोजगार, अनाथों और लाचार की दास्तान लिखने आया हूँ हाँ मैं आजाद हिंदुस्तान लिखने आया हूँ| एक ही कपड़े में सारे मौसम गुजारनेवाले सूखा, बाढ़ और ओले से फसल बर्बाद होने पर रोने और मरने वाले कर्ज में डूबे हुए उस अन्नदाता किसान की जुबान लिखने आया हूँ हाँ मैं आजाद हिंदुस्तान लिखने आया हूँ| मैं भगत, सुभाषचन्द्र और आज़ाद जैसा भारत माँ का सपूत तो नहीं लेकिन इन्हें सिर्फ जन्म और मरण दिन पर याद करने वाले और आंसूं बहाने वालों, को इन सपूतों की याद दिलाने आया हूँ फिर से बलिदान लिखने आया हूँ हाँ मैं आजाद हिंदुस्तान लिखने आया हूँ| मजहब के नाम पर ना हो लड़ाई जाति धर्म के नाम पर ना हो कोई खाई  सब मिल-जुलकर रहे भाई भाई जाति धर्म से ऊपर उठने के लिए इम्तिहान लिखने आया हूँ हाँ मैं आजाद हिंदुस्तान लिखने आया हूँ| सीमा पर देश के लिए लड़नेवाले अपनी जान की परवाह किए बिना देश पर मर मिटने वाले मैं देश के ऐसे वीरों को सलाम लिखने आया हूँ हाँ मैं आजाद हिंदुस्तान लिखने आया हूँ| सब के पास हो रोज़गार और अपना व्यापार  देश मुक्त हो ग़रीबी, बेरोजगारी,बलात्कार और भष्ट्राचार 

पूज्य अटलजी - 15 अगस्त का दिन कहता

पंद्रह अगस्त का दिन कहता – आज़ादी अभी अधूरी है। सपने सच होने बाकी है, रावी की शपथ न पूरी है।। जिनकी लाशों पर पग धर कर आज़ादी भारत में आई। वे अब तक हैं खानाबदोश ग़म की काली बदली छाई।। कलकत्ते के फुटपाथों पर जो आँधी-पानी सहते हैं। उनसे पूछो, पंद्रह अगस्त के बारे में क्या कहते हैं।। हिंदू के नाते उनका दु:ख सुनते यदि तुम्हें लाज आती। तो सीमा के उस पार चलो सभ्यता जहाँ कुचली जाती।। इंसान जहाँ बेचा जाता, ईमान ख़रीदा जाता है। इस्लाम सिसकियाँ भरता है, डालर मन में मुस्काता है।। भूखों को गोली नंगों को हथियार पिन्हाए जाते हैं। सूखे कंठों से जेहादी नारे लगवाए जाते हैं।। लाहौर, कराची, ढाका पर मातम की है काली छाया। पख्तूनों पर, गिलगित पर है ग़मगीन गुलामी का साया।। बस इसीलिए तो कहता हूँ आज़ादी अभी अधूरी है। कैसे उल्लास मनाऊँ मैं? थोड़े दिन की मजबूरी है।। दिन दूर नहीं खंडित भारत को पुन: अखंड बनाएँगे। गिलगित से गारो पर्वत तक आज़ादी पर्व मनाएँगे।। उस स्वर्ण दिवस के लिए आज से कमर कसें बलिदान करें। जो पाया उसमें खो न जाएँ, जो ख

संघ गणगीत- जबकि नगाड़ा बज ही गया है

जब हि नगाडा बज हि गया है जब हि नगाडा बज हि गया है, सरहद पर शैतान का नक़्शे पर से नाम मिटा दो, पापी पाकिस्तान का ॥ धृ ० ॥ कभी इधर से कभी उधर से घुसता है गुर्राता है डल झेलम के मधु लहरों में गंदे पांव लगाता है केसर पर बारूद छिड़कता अँगारे बरसाता है न्यौता देता महाकाल को अपनी मौत बुलाता है भूल गया है हरप-हरप लब खुद ही पाक कुरान का ॥ १ ॥ बोल दिया है धावा तो फिर शेरों कदम हटाना मत तोपों के प्रलयंकर जबड़े तुम वापस पलटाना मत सिद्धांतों की परिभाषा में अपने को उलझाना मत धूल उड़ा देना पिंडी की पलभर दया दिखाना मत फिर कब ऐसा वक्त आएगा लड्डू के भुगतान का ॥ २ ॥ अमन अहिंसा पंचशील के सरगम कुछ दिन गाओ मत भड़क उठा है जरी तो फिर भड़की आग बुझाओ मत पकी फसल की तरह काट दो जिन्दा एक बचाओ मत लाख बार मर जाओ लेकिन माँ का दूध जलाओ मत हिन्दुकुश पर गाडके आना झंडा हिन्दुस्थान का ॥ ३ ॥ खुलकर दो दो हाथ दिखाना संगाई तलवारों के हथियारों से उत्तर देना दुश्मन के हुंकारों के छाँट छाँट कर मुंड काटना घुसपैठी हत्यारों के हमें भेट लेने आये है जयचंद गद्दारों के गिनगीनकर बदला लेन

देश जागे देश जागे- संघ गणगीत

देश जगे देश जगे मंत्र ,सब गूंजा रहे है | मातृमंदिर के पुजारी ,एक स्वर में गा रहे है ||ध्रु || जिसकी चिंगारी ह्रदय में प्रेरणा सहस जगा दे और तन मन का सहजतम मोह भय भ्रम सब जला दे उस अनोखी आग को सौ यघ कर सुलगा रहे है मातृमंदिर के पुजारी ,एक स्वर में गा रहे है ||१|| पथ कठिन हो या सरल हो चलने के सामान मांगे तेज तूल बलिदान पुलकित देश का सम्मान मांगे चिरविजय की कमाना हर स्वस्थ्य मन अपना रहे है मातृमंदिर के पुजारी ,एक स्वर में गा रहे है||२|| शक्ति संचय से विकल जब दीनता का सहज लय हो मातृसेवा में निहित जब देश का प्रतेक जन हो वे सुहाने सुखद पल प्रतिपल निकटम आ रहे है मातृमंदिर के पुजारी ,एक स्वर में गा रहे है ||३||

एकल गीत- भारत एक हमारा।

एक संस्कृति एक धर्म है एक हमारा नारा। एक भारती की संतति हम भारत एक हमारा॥ दैनिक शाखा संस्कारों से सीखें नित्य नियम अनुशासन। मातृ भूमि प्रति अक्षय निष्ठा करें समर्पित तन मन धन। भरत भूमि का कण कण तृण तृण है प्राणों से प्यारा॥१॥ रूढ़ि कुरीति और वैषमता ऊँच-नीच का भाव मिटाकर संगठना की शंख ध्वनि हो बान्धु बन्धु का भाव जगाकर। नव जागृति का सूर्य उगा दें है संकल्प हमारा॥२॥ जाति पन्थ का भेद तोडकर। प्रान्त मोह का भूत भगाये भाषाओं का अहं मिटाकर। खोई एकात्मता मिलायें हिन्दु हिन्दु सब एक रहें मिल है कर्तव्य हमारा॥३॥ अपने शील तेज पौरुष से। करें संगठित हिन्दू सारे धरती से लेकर अम्बर तक। गुँज उठे जय भारत प्यारा। प्रतिपल चिन्तन ध्येय -देव का जीवन कार्य हमारा॥४॥

संस्कृत गीत - भुवमवतीर्णा नाकस्पर्धिनी

भुवमवतीर्णा नाकस्पर्धिनी भारतधरणीयं, मामकजननीयम्॥ शिरसि हिमालय-मुकुट-विराजिता पादेजलधिजलेन परिप्लुता मध्ये गंगापरिसरपूता भारतधरणीयं, मामकजननीयम् ॥ भुवमवतीर्णा॥ काश्मीरेषु च वर्षति तुहिनम् राजस्थाने प्रदहति पुलिनम् मलयस्थाने वाति सुपवन: भारतधरणीयं, मामकजननीयम् ॥ भुवमवतीर्णा॥ नानाभाषि-जनाश्रय-दात्री विविध-मतानां पोषणकत्र्री नानातीर्थ-क्षेत्रसावित्री भारतधरणीयं,मामकजननीयम् ॥ भुवमवतीर्णा॥ पुण्यवतामियमेव हि नाक: पुण्यजनानां रुद्रपिनाक: पुण्यपराणामाश्रयलोक: भारतधरणीयं, मामकजननीयम् ॥भुवमवतीर्णा॥

संस्कृत गीत - मनसा सततं स्मरणीयम्

मनसा सततं स्मरणीयम् वचसा सततं वदनीयम् लोकहितं मम करणीयम् ॥ लोकहितं॥ न भोगभवने रमणीयम् न च सुखशयने शयनीयनम् अहर्निशं जागरणीयम् लोकहितं मम करणीयम् ॥ मनसा॥ न जातु दु:खं गणनीयम् न च निजसौख्यं मननीयम् कार्यक्षेत्रे त्वरणीयम् लोकहितं मम करणीयम् ॥ मनसा॥ दु:खसागरे तरणीयम् कष्टपर्वते चरणीयम् विपत्तिविपिने भ्रमणीयम् लोकहितं मम करणीयम् ॥ मनसा॥ गहनारण्ये घनान्धकारे बन्धुजना ये स्थिता गह्वरे तत्रा मया संचरणीयम् लोकहितं मम करणीयम् ॥ मनसा॥

संघ गणगीत - आँधी क्या है तूफान मिलें

आँधी क्या है तूफान मिलें, चाहे जितने व्यवधान मिलें, बढ़ना ही अपना काम है, बढ़ना ही अपना काम है।। हम नई चेतना की धारा, हम अंधियारे में उजियारा, हम उस बयार के झोंके हैं, जो हर ले जग का दुःख सारा, चलना है शूल मिलें तो क्या, पथ में अंगार जलें तो क्या, जीवन में कहाँ विराम है, बढ़ना ही अपना काम है।। 1।। हम अनुगामी उन पाँवों के, आदर्श लिए जो बढ़े चले, बाधाएँ जिन्हें डिगा न सकीं, जो संघर्षों में अड़े रहे, सिर पर मंडरता काल रहे, करवट लेता भूचाल रहे, पर अमिट हमारा नाम है, बढ़ना ही अपना काम है।। 2।। वह देखो पास खड़ी मंजिल, इंगित से हमें बुलाती है, साहस से बढ़ने वालों के, माथे पर तिलक लगाती है, साधना न व्यर्थ कभी जाती, चलकर ही मंजिल मिल पाती, फिर क्या बदली क्या घाम है, बढ़ना ही अपना काम है।। 3।।

संघ गणगीत - एक-एक पग बढ़ते जाएँ

एक-एक पग बढ़ते जाएँ, बल-वैभव का युग फिर लायें।। जन-जन की आंखों में जल है, भारत माता आज विकल है, आज चुनौती हम पुत्रों को, जिसमें राष्ट्र- प्रेम अविचल है, अपना जीवन धन्य इसी में, मुरझाये मुख कमल खिलायें।।1।। बिखरे सुमन पड़े हैं अगणित, स्नेह सूत्र में कर लें गुम्फित माता के विस्मृत मंदिर को, मधुर गंध से कर दें सुरभित, जननी के पावन चरणों में, कोटि सुमन की माला चढ़ायें।।2।। कोटि जनों की संघ शक्ति हो, सब हृदयों में राष्ट्रभक्ति हो, कोटि बढ़ें पग एक दिशा में, सबके मन में एक युक्ति हो, कोटि-कोटि हाथों वाली नव, असुरमर्दिनी हम प्रगटायें।।3।।

संघ गणगीत - कोटि-कोटि कण्ठों ने गाया माँ का गौरव गान है

कोटि-कोटि कण्ठों ने गाया माँ का गौरव गान है, एक रहे हैं एक रहेंगे, भारत की संतान हैं।। पंथ विविध चिंतन नानाविधि, बहुविधि कला प्रदेश की, अलग वेश भाषा विशेष है, सुन्दरता इस देश की, इनको बांट-बांट कर देखे, दुश्मन वो नादान है।। 1।। समझायेंगे नादानों को, सोया देश जगायेंगे, दुश्मन के नापाक इरादे, जड़ से काट मिटायेंगे, भारत भाग्य विधाता हम हैं, जन-जन की आवाज हैं।। 2।। ऊंच-नीच निज के विभेद ने, दुर्बल किया स्वदेश को, बाहर से भीतर से घेरा, अंधियारे ने देश को, मिटे भेद मिट जाये अंधेरा, जलती हुई मशाल हैं।। 3।। बदलेंगे ऐसी दिशा को, जो परवश मानस करती, स्वावलंबिता स्वाभिमान से, जाग उठे अंबर धरती, पुनरपि वैभव के शिखरों पर, बढ़ता देश महान है।। 4।।

संघ गणगीत - अब जाग उठो कमर कसो

अब जाग उठो कमर कसो, मंजिल की राह बुलाती है, ललकार रही हमको दुनियां, भेरी आवाज लगाती है।। है ध्येय हमारा दूर सही, पर साहस भी तो क्या कम है, हमराह अनेकों साथी हैं, कदमों में अंगद का दम है, सोने की लंका राख करे वह आग लगानी आती है।। 1।। पग-पग पर कांटे बिछे हुए, व्यवहार कुशलता हममें हैं, विश्वास विजय का अटल लिये, निष्ठा कर्मठता हममें है, विजयी पुरुषों की परम्परा अनमोल हमारी थाती है।। 2।। हम शेर शिवा के अनुगामी, राणा प्रताप की आन लिये, केशव-माधव का तेज लिये, अर्जुन का शर-संधान लिये, संगठन तंत्र की परंपरा वैभव का साज सजाती है।। 3।।

संघ गणगीत - रक्त शिराओं में राणा का

रक्त शिराओं में राणा का रह-रह आज हिलोरे लेता। मातृभूमि का कण-कण, तृण-तृण, हमको आज निमंत्रण देता।। वीर प्रसूता भारत माँ की हम सब बन्धु हैं संतानें, हर विपदा जो माँ पर आती सहते हैं हम सीना ताने। युग-युग की निद्रा को तजकर फिर  है अपना गौरव चेता, मातृभूमि का कण-कण......।।1।। यह वह भूमि जहाँ पर नित-नित जुड़ता बलिदानों का मेला, इस धरती के पुत्रों ने ही, हँस-हँस महामृत्यु को झेला। हमको डिगा न पाया कोई अगणित आये विश्व-विजेता, मातृभूमि का कण-कण......।।2।। आज पुनः आक्रन्त हुई है मातृभूमि हम सबकी प्यारी, उठो चुनौती को स्वीकारो युवकों आज हमारी बारी। सीमा पर से अरिदल देखो हमको पुनः चुनौती देता, मातृभूमि का कण-कण......।।3।। कहीं न फिर हमसे छिन जाये देवभूमि कश्मीर हमारी, समय आ गया खींचो वीरों कोषों से तुम खड्ग दुधारी। मिटा विश्व से इन दुष्टों को बनें जगत के अतुल विजेता, मातृभूमि का कण-कण......।।4।।        

संघ गणगीत - सबसे ऊँची विजय पताका

सबसे ऊँची विजय पताका लिए हिमालय खड़ा रहेगा। मानवता का मानबिन्दु यह भारत सबसे बड़ा रहेगा।। विन्ध्या की चट्टानों पर रेवा की यह गति तूफानी शत् शत् वर्षों तक गायेगी जीवन की संघर्ष कहानी इसके चरणों में नत होकर हिन्दु महादधि पड़ा रहेगा सबसे ऊँची विजय पताका लिए हिमालय खड़ा रहेगा।।1।। जिसकी मिट्टी में पारस है स्वर्ण-धूलि उस बंग भूमि की पंचनदों के फव्वारों से सिंची बहारें पूण्य-भूमि की। शीर्ष-बिन्दु श्रीनगर सिन्धु तक सेतुबन्धु भी अड़ा रहेगा सबसे ऊँची विजय पताका लिए हिमालय खड़ा रहेगा।।2।। जिस धरती पर चन्दा-सूरज साँझ-सवेरे नमन चढ़ाते षड्-ऋतु के सरगम पर पंछी दीपक और मल्हार सुनाते। वही देश-मणि माँ-वसुधा के हृदय-हार में जड़ा रहेगा सबसे ऊँची विजय पताका लिए हिमालय खड़ा रहेगा।।3।।

संघ गणगीत - भारत माँ का मान बढ़ाने बढ़ते बाँकें मस्ताने

भारत माँ का मान बढ़ाने बढ़ते बाँकें मस्ताने, कदम-कदम पर मिल-जुल गाते वीरों के व्रत के गाने।। ऋषियों के मंत्रों की वाणी, भरती साहस नस नस में, चक्रवर्तियों की गाथा सुन, नहीं जवानी है बस में हर-हर महादेव के स्वर से, विश्व गगन को थर्राने। कदम कदम पर . . . . . . .  हम पर्वत को हाथ लगाकर, संजीवन कर सकते हैं, मर्यादा बन असुरों का, बलमर्दन कर सकते हैं, रामेश्वर की पूजा करने जल पर पत्थर तैराने। कदम कदम पर . . . . . . . हिरणाकुश का वक्ष चीर दे, नरसिंह की दहाड़ लिये, कालयवन का काल बने जो, योगेश्वर की नीति लिए चक्र सुदर्शन की छाया में, गीता अमृत बरसाने। कदम कदम पर . . . . . . .

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ संघ गीत एक प्रेरणा - संघ एकल गीत - नमन करें इस मातृभूमि को

*नमन करें इस मातृभूमि को* नमन करें इस मातृभूमि को, नमन करें आकाश को बलिदानों की पृष्ठभूमि पर, निर्मित इस इतिहास को ॥धृ॥ इस धरती का कण-कण पावन, यह धरती अवतारों की है । ऋषि-मुनियों से वन्दित धरती, धरती वेद-पुराणों की है । मौर्यगुप्त सम्राटों की यह, विक्रम के अभियानों की है । महावीर गौतम की धरती, धरती चैत्य विहारों की है । नमन करें झेलम के तट को, हिममंडित कैलाश को ॥१॥ याद करें सन सत्तावन की, उस तलवार पुरानी को हम । रोटी और कमल ने लिख दी, युग की अमिट कहानी को हम । माय मेरा रंग दे बसंती चोला, भगतसिंह बलिदानी को हम । खून मुझे दो आज़ादी लो, इस सुभाष की वाणी को हम । गुरु गोविन्दसिंह की कलियों के उस, अजर अमर बलिदान को ॥२॥ आओ हम सब मिल-जुल कर यह, संगठना का मंत्र जगायें ।  व्यक्ति-व्यक्ति के हृदय में, राष्ट्रभक्ति के दीप जलायें । हिन्दू-हिन्दू सब एक संग हो, भारत माँ का मान बढायें । अन्नपूर्णा भारतमाता, जग के सब दुख दैन्य मिटाये । अर्पित कर दें मातृभूमि हित, तन मन धन और प्राण को ॥३॥

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ संघ गीत एक प्रेरणा- गणगीत - सत्य का आधार लेकर।

सत्य का आधार लेकर, हम हिमालय से खड़े हैं। शील में, औदार्य में हम, विश्व में सबसे बड़े हैं।।धृ।। संघ की शाखा निरंतर, शक्ती की आराधना हैं। राष्ट्र की नवचेतना के, जागरण की साधना हैं। ध्येय पथ पर अडिग होकर, पैर अंगद से गडे है।।१।। सत्य का आधार लेकर... विश्व में फहराएंगे हम, देव संस्कृती की पताका। जगत को संदेश देंगे, हिन्दुओ की एकता का। दूर कर अवरोध सारे, ध्येय पथ पर हम बढे हैं।।२।। सत्य का आधार लेकर... जीत ले विश्वास सब का, कर्म कौशल के सहारे। बुद्धी बल से नष्ट कर दे, शत्रु के, षडयंत्र सारे। संगठन का मार्ग दुर्गम, नियम संयम से चले हैं।।३।। सत्य का आधार लेकर...

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ - संघ गीत एक प्रेरणा - न हो साथ कोई- गण गीत

न हो साथ कोई अकेले बढ़ो तुम सफलता तुम्हारे चरण चूम लेगी ॥धृ॥ सदा जो जगाए बिना ही जगा है अँधेरा उसे देखकर ही भगा है। वही बीज पनपा पनपना जिसे था घुना क्या किसी के उगाए उगा है। अगर उग सको तो उगो सूर्य से तुम प्रखरता तुम्हारे चरण चूम लेगी ॥१॥ सही राह को छोड़कर जो मुड़े हैं वही देखकर दूसरों को कुढ़े हैं। बिना पंख तौले उड़े जो गगन में न सम्बन्ध उनके गगन से जुड़े हैं। अगर उड़ सको तो पखेरु बनो तुम प्रवरता तुम्हारे चरण चूम लेगी ॥२॥ न जो बर्फ की आँधियों से लड़े हैं कभी पग न उनके शिखर पर पड़े हैं। जिन्हें लक्ष्य से कम अधिक प्यार खुद से वही जी चुराकर विमुख हो खड़े हैं। अगर जी सको तो जियो जूझकर तुम अमरता तुम्हारे चरण चूम लेगी ॥३॥

रानी दुर्गावती - पुण्यतिथि

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"मैं युद्ध भूमि छोडकर नहीं जाऊंगी, इस युद्धमें मुझे विजय अथवा मृत्युमें से एक चाहिए। " - रानी दुर्गावती अकबरने वर्ष १५६३ में आसफ खान नामक बलाढ्य सेनानीको गोंडवाना पर आक्रमण करने भेज दिया । यह समाचार मिलते ही रानी दुर्गावती ने अपनी व्यूहरचना आरंभ कर दी । सर्वप्रथम अपने विश्वसनीय दूतों द्वारा अपने मांडलिक राजाओं तथा सेनानायकों को सावधान हो जानेकी सूचनाएं भेज दीं । अपनी सेनाकी कुछ टुकडियोंको घने जंगलमें छिपा रखा और शेष को अपने साथ लेकर रानी निकल पडी । रानी ने सैनिकों को मार्गदर्शन किया । एक पहाड़ की तलहटीपर आसफ खान और रानी दुर्गावतीका सामना हुआ । बडे आवेशसे युद्ध हुआ । मुगल सेना विशाल थी । उसमें बंदूकधारी सैनिक अधिक थे । इस कारण रानीके सैनिक मरने लगे; परंतु इतनेमें जंगलमें छिपी सेनाने अचानक धनुष-बाणसे आक्रमण कर, बाणोंकी वर्षा की । इससे मुगल सेनाको भारी क्षति पहुंची और रानी दुर्गावतीने आसफ खानको पराजित किया । आसफ खानने एक वर्षकी अवधिमें ३ बार आक्रमण किया और तीनों ही बार वह पराजित हुआ। अंतमें वर्ष १५६४ में आसफखान ने सिंगौरगढ पर घेरा डाला; परंतु रानी वहां से भागन