गुरु दक्षिणा कार्यक्रम - राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
विश्व गुरु तव अर्चना मे भेट अर्पण क्या करे जब कि तन मन धन तुम्हारे और पूजन क्या करे ॥ध्रु॥ प्राची की अरुणिम छटा है यज्ञ की आभा विभा है अरुण ज्योतिर्मय ध्वजा है दीप दर्शन क्या करे ॥१॥ वेद की पावन ऋचा से आज तक जो राग गून्जे वन्दना के इन स्वरो मे तुच्छ वन्दन क्या करे ॥२॥ राम से अवतार आये कर्ममय जीवन चढाये अजिर तन तेरा चलाये और अर्चन क्या करे ॥३॥ पत्र फल और् पुष्प जल से भावना ले हृदय तल से प्राण के पल पल विपल से आज आराधन करे॥४॥ जैसे सूर्य बिना कहे सबको प्राण ऊर्जा देता है, मेघ जल बरसाता है, हवा भी बिना किसी भेदभाव व लालच के ठंडक पहुँचाकर सभी को जीवित रखती है और फूल भी अपनी महक में कोई कसर नहीं रखता, वैसे ही गुरुजन भी स्वयं ही शिष्यों की भलाई में लगे रहते हैं। उनका उद्देश्य शिष्य से गुरुदक्षिणा लेना नहीं, अपितु शिष्य का सूर्य की भाँति दैदीप्यमान होना है जो गुरु के सिर को गर्व से ऊँचा कर दे।