संघ गणगीत - सबसे ऊँची विजय पताका
सबसे ऊँची विजय पताका लिए हिमालय खड़ा रहेगा।
मानवता का मानबिन्दु यह भारत सबसे बड़ा रहेगा।।
विन्ध्या की चट्टानों पर रेवा की यह गति तूफानी
शत् शत् वर्षों तक गायेगी जीवन की संघर्ष कहानी
इसके चरणों में नत होकर हिन्दु महादधि पड़ा रहेगा
सबसे ऊँची विजय पताका लिए हिमालय खड़ा रहेगा।।1।।
जिसकी मिट्टी में पारस है स्वर्ण-धूलि उस बंग भूमि की
पंचनदों के फव्वारों से सिंची बहारें पूण्य-भूमि की।
शीर्ष-बिन्दु श्रीनगर सिन्धु तक सेतुबन्धु भी अड़ा रहेगा
सबसे ऊँची विजय पताका लिए हिमालय खड़ा रहेगा।।2।।
जिस धरती पर चन्दा-सूरज साँझ-सवेरे नमन चढ़ाते
षड्-ऋतु के सरगम पर पंछी दीपक और मल्हार सुनाते।
वही देश-मणि माँ-वसुधा के हृदय-हार में जड़ा रहेगा
सबसे ऊँची विजय पताका लिए हिमालय खड़ा रहेगा।।3।।
मानवता का मानबिन्दु यह भारत सबसे बड़ा रहेगा।।
विन्ध्या की चट्टानों पर रेवा की यह गति तूफानी
शत् शत् वर्षों तक गायेगी जीवन की संघर्ष कहानी
इसके चरणों में नत होकर हिन्दु महादधि पड़ा रहेगा
सबसे ऊँची विजय पताका लिए हिमालय खड़ा रहेगा।।1।।
जिसकी मिट्टी में पारस है स्वर्ण-धूलि उस बंग भूमि की
पंचनदों के फव्वारों से सिंची बहारें पूण्य-भूमि की।
शीर्ष-बिन्दु श्रीनगर सिन्धु तक सेतुबन्धु भी अड़ा रहेगा
सबसे ऊँची विजय पताका लिए हिमालय खड़ा रहेगा।।2।।
जिस धरती पर चन्दा-सूरज साँझ-सवेरे नमन चढ़ाते
षड्-ऋतु के सरगम पर पंछी दीपक और मल्हार सुनाते।
वही देश-मणि माँ-वसुधा के हृदय-हार में जड़ा रहेगा
सबसे ऊँची विजय पताका लिए हिमालय खड़ा रहेगा।।3।।
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